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    बेल के पेड़ (बिल्व) व बेलपत्र के आयुर्वेदिक गुण के बारे में आप ने कभी पड़ा नही होगा , पड़े बेलपत्र के उपयोग ,


    बेल का पेड़ 25-30 फुट ऊंचा, 3-4 फुट मोटा, पत्ते जुड़े हुए, त्रिफाक और गन्धयुक्त होता है। पत्तिया एकांतर क्रम में जमी होती हैं। इसका फल 2-4 इंच व्यास का गेंद के समान गोल तथा कठोर आवरण वाले होते हैं। फल कवच कच्ची अवस्था में हरे रंग और पकने पर सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। इसके बीज छोटे कड़े तथा अनेक होते हैं।

    बेल (बिल्व) का वानस्पतिक नाम:- ऐग्ले मार्मेलोस(Aegle marmelos)
    संस्कृत नाम :- बिल्व, श्रीफल
    अंग्रेजी नाम :- Aegle marmelos
    धार्मिक महत्व :- हिन्दू धर्म में बेल (बिल्व) वृक्ष को
    भगवान शिव का रूप माना जाता है।

    प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा
    दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वि
    यतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं।

    बेल (बिल्व) के फल के 100 ग्राम गूदे का रासायनिक विश्लेषण (Chemical Analysis of pulp of 100 grams of fruit of bell) :-
    नमी 61.5%, वसा 3%, प्रोटीन 1.8%, फाइबर
    2.9%, कार्बोहाइड्रेट 31.8%, कैल्शियम 85 मिलीग्राम,
    फॉस्फोरस 50 मिलीग्राम, आयरन 2.6 मिलीग्राम, विटामिन
    C2 मिलीग्राम | और बेल में 137 कैलोरी ऊर्जा तथा कुछ
    मात्रा में विटामिन बी भी पाया जाता है।

    वायुमंडल में व्याप्त अशुद्धियों को सोखने की क्षमता सबसे
    ज्यादा बेल (बिल्व) वृक्ष में होती है।

    बेल पेड़ ,जड़ ,फल ,छाल व बीज के स्वभाव(The nature of vine tree, root, fruit, bark and seed) :-

    बेल की तासीर गर्म होती हैं। बेल के अंदर टैनिक एसिड़, एक उड़नशील तेल, एक कड़वा तत्व और एक चिकना लुआबदार पदार्थ पाया जाता हैं। बेल की जड़, तत्त्वों और छाल में चीनी को कम करने वाले तत्व और टैनिन पाये जाते हैं। बेल के फल के गूदे में मांरशेलीनिस तथा बीजों में पीले रंग का तेल होता है जोकि बहुत ही उत्तम विरेचन (पेट साफ करने वाला) का कार्य करता है।

    बेल के पेड़ के गुण-धर्म(The properties of the vine tree) :-
    बेल कफ वात को शांत करने वाला, रुचिकारक, दीपन (उत्तेजक), पाचन, दिल, रक्त (खून को गाढ़ा करना), बलगम को समाप्त करने वाला, मूत्र (पेशाब) और शर्करा को कम करने वाला, कटुपौष्टिक तथा अतिसार (दस्त), रक्त अतिसार (खूनी दस्त), प्रवाहिका (पेचिश), मधुमेह (डायबिटीज), श्वेतप्रदर, अतिरज:स्राव (मासिक-धर्म में खून अधिक आना), रक्तार्श (खूनी बवासीर) को नष्ट करता है। बेल का फल-लघु (छोटा), तीखा, कषैला, उत्तेजक, पाचन, स्निग्ध (चिकना), गर्म तथा शूल (दर्द), आमवात (गठिया), संग्रहणी (पेचिश), कफातिसार, वात, कफनाशक होता है तथा यह आंतों को ताकत देती है।


    बेल के अर्धपक्व फल (आधा पका फल) के गुण(Properties of half-ripe vine tree fruit) :-
    यह लघु (छोटा), कडुवा, कषैला, गर्म (उष्ण), स्निग्ध (चिकना), संकोचक, पाचन, हृदय और कफवात को नष्ट करता है। बेल की मज्जा और बीज के तेल अधिक गर्म और तेज वात को समाप्त करते हैं। बेल के पके फल भारी, कड़ुवा, तीखा रस युक्त मधुर (मीठा) होता है। यह गर्म दाहकारक (जलन पैदा करने वाला), मृदुरेचक (पेट साफ करने वाला) वातनुलोमक, वायु को उत्पन्न करने वाला और हृदय को ताकत देता है।

    बेलपत्र (पत्ता) के गुण(Properties of Leaf) :-
    बेल का पत्ता संकोचक, पाचक, त्रिदोष (वात, पित और कफ) विकार को नष्ट करने वाला, कफ नि:सारक, व्रणशोथहर (घाव की सूजन को दूर करने ), शोथ (सूजन) को कम करने वाला, स्थावर (विष) तथा मधुमेह (डायबिटीज), जलोदर (पेट में पानी का भरना), कामला (पीलिया), ज्वर (बुखार) आंखों से तिरछा दिखाई देना आदि में लाभ पहुंचाता है।

    बेल के पेड़ की जड़ और छाल के गुण(Properties of the root and bark of the vine tree) :-
    जड़ और छाल लघु, मीठा, वमन (उल्टी), शूल (दर्द), त्रिदोष (वात, पित्त और कफ), नाड़ी तंतुओं के लिये शामक, कुछ नशा पैदा करने वाली, बुखार, अग्निमांघ (भूख को बढ़ाने वाला), अतिसार (दस्त) ग्रहणी (पेचिश), , मूत्रकृच्छ् (पेशाब करने में कष्ट होना), हृदय की कमजोरी आदि में प्रयोग होता है।

    निम्न रोगों में बेल व बेलपत्र के उपयोग ,,Use of Bell and Belpette in the following diseases :-

    1. सिर में दर्द (Headache) :-
    • बेल की सूखी हुई जड़ को थोडे़ से पानी के साथ पीस कर माथे पर गाढ़ा लेप करने से सिर दर्द में लाभ मिलता है।
    • लगभग 6 ग्राम बेल को पानी में या बकरी के दूध में घोंटकर 10 दिन तक पीने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
    • बेल के रस में एक कपड़े को अच्छी तरह से भिगोकर उसकी पट्टी सिर पर रखने से भी सिर दर्द ठीक हो जाता है।
    2. बालों या सिर में जूं (louse in Hair) :-
    • बेल के पके हुए फल के आधे कटोरी जैसे छिलके को साफकर उसमें तिल का तेल और कपूर मिलाकर दूसरे भाग से ढककर रखने से तेल को सिर में लगाने से सिर में जूं नहीं रहती हैं।
    3. आंखों का मोतियाबिंद (Eye cataract) :-
    • बेल के पत्तों पर घी लगाकर तथा सेंककर आंखों पर बांधने से, पत्तों का रस आंखों में टपकाने से, साथ ही पत्तों को पीसकर मिश्रण बनाकर उसका लेप पलकों पर करने से आंखों के कई रोग मिट जाते हैं।
    4. रतौंधी (Night blind) :-
    • 10 ग्राम ताजे बेल के पत्तों को 7 कालीमिर्च के साथ पीसकर, 100 मिलीलीटर पानी में छानकर उसमें 25 ग्राम मिश्री या चीनी मिलाकर सुबह और शाम पीयें तथा रात में बेल के पत्तों को भिगोये हुए पानी से सुबह आंखों को धोयें। इससे रतौंधी के रोग में लाभ मिलता है।
    • 10 ग्राम बेल के पत्ते, 6 ग्राम गाय का घी और 1 ग्राम कपूर को तांबे की कटोरी में इतना रगड़ें की काला सुरमा बन जाये। इस सुरमे को आंखों में लगाने से लाभ होता है और सुबह गाय के पेशाब से आंख को धोने से भी आराम मिलता है।

    5. बहरापन (Deafness) :-
    • बेल के कोमल पत्तों को अच्छी गाय के पेशाब में पीसकर तथा 4 गुना तिल का तेल तथा 16 गुना बकरी का दूध मिलाकर धीमी आग द्वारा तेल को गर्म करके रख लें। इस तेल को रोजाना कानों में डालने से बहरापन, सनसनाहट (कान की आवाज), कानों की खुश्की और कानों की खुजली के रोगों में आराम मिलता है।
    • बेल के पत्तों का तेल, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, कूट, पीपलामूल, बेल की जड़ का रस और गाय का पेशाब को बराबर मात्रा में लेकर हल्की आग पर पकाने के लिये रख दें। फिर इसे छानकर किसी शीशी में भर लें। इस तेल को `बधिरता हर तेल´ कहते है। इस तेल को कान में डालने से कान के सभी रोग दूर हो जाते हैं।
    • बेल के पत्तों को गाय के पेशाब के साथ पीसकर बकरी के दूध मिले हुए तेल में पकाकर बने तेल को कान में बूंद-बूंद करके डालने से बहरेपन के रोग में लाभ होता है।
    • बेल के पके हुए बीजों का तेल निकालकर बूंद-बूंद करके कान में डालने से बहरापन समाप्त हो जाता है।

    6. क्षयरोग (टी.बी) (Decay Disease(TB)) :-
    • 4-4 भाग बेल की जड़, अडूसा तथा नागफनी थूहर के के सूखे हुए फल और 1-1 भाग सोंठ, कालीमिर्च व पिप्पली लेकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 20 ग्राम की मात्रा में लेकर आधा किलो पानी में पकाकर चौथाई हिस्सा बचने पर सुबह और शाम शहद के साथ रोगी को सेवन कराने से क्षय (टी.बी), श्वास (दमा), वमन (उल्टी) आदि रोगों में जल्दी लाभ मिलता है।

    7. दिल का दर्द (heart ache) :-
    • 1 ग्राम बेल के पत्तों के रस में 5 ग्राम गाय का घी मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से दिल के दर्द में जल्दी आराम मिलता है।

    8. पेट का दर्द (Stomach ache) :-
    • 10 ग्राम बेल के पत्तों को कालीमिर्च के साथ पीसकर उसमें 10 ग्राम मिश्री को मिलाकर शर्बत बनाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
    • बेल की जड़, एरण्ड की जड़, चित्रक की जड़ और सोंठ को एक साथ पीसकर अष्टमांश काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ी सी भुनी हुई हींग तथा 1 ग्राम सेंधानमक छिड़ककर, 20-25 ग्राम की मात्रा में रोगी को पिलाने से वात (गैस) तथा कफजन्य के कारण हुआ पेट का दर्द दूर हो जाता है।

    9. जलन (दाह), तृष्णा (प्यास), अजीर्ण (भूख का कम होना), अम्लपित्त्त (डायबिटीज) होने पर (Burning (Dah), Trishna (thirst), indigestion (loss of appetite), Acidity (diabetes)) :-
    • 20 ग्राम बेल के पत्तों को 500 मिलीलीटर पानी में तीन घंटे तक भिगोकर रख लें। इस पानी को रोजाना 2-2 घंटे के बाद 20-20 ग्राम की मात्रा में रोगी को पिलाने से आन्तरिक जलन शांत होती है।
    • छाती में जलन हो तो 20 ग्राम बेल के पत्तों को पानी के साथ पीसकर और छानकर उसमें थोड़ी सी मिश्री मिलाकर दिन में 3-4 बार रोगी को पिलाने से जलन में लाभ होता है।
    • 10 ग्राम बेल के पत्तों के रस में 1-1 ग्राम कालीमिर्च और सेंधानमक मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने पेट की जलन में लाभ होता है।

    10. भूख का कम लगना (Lack of appetite) :-
    • 2-2 ग्राम बेल की गिरी का चूर्ण, छोटी पिप्पली, बंशलोचन व मिश्री को मिलाकर इसमें 10 ग्राम तक अदरक का रस मिलाकर तथा थोड़े से पानी में मिलाकर हल्की आग पर पकायें। पकने पर गाढ़ा हो जाने पर दिन में 4 बार चाटने से भूख का कम लगने का रोग दूर हो जाता है।
    • 100 ग्राम बेल की गिरी का चूर्ण और 20 ग्राम अदरक को पीसकर इसमें 50 ग्राम चीनी और 20 ग्राम इलायची के चूर्ण को मिलाकर रख लें। खाना खाने के बाद यह आधा चम्मच चूर्ण गुनगुने पानी से सुबह और शाम लेने से भोजन पचाने की क्रिया ठीक होती है और भूख भी खुलकर लगती है।
    • बेल की गिरी का पका हुआ फल खाने से मंदाग्नि (भूख कम लगना) और ज्वर (बुखार) में लाभ मिलता हैं।
    11. बेलपत्र के कुछ घरेलू नुस्खे (Some home remedies for ballet) :-

    • बेलपत्र के रस को हल्के गुनगुने पानी में मिलाएं और इसमें शहद की कुछ बूंदें डालें। इस घोल का नियमित सेवन करने से खून साफ होने में मदद मिलती है।
    • बेलपत्र की मदद से सफेद दाग भी ठीक होते हैं। बेल के गूदे में सोरलिन नामक तत्व पाया जाता है जो त्वचा की धूप सहने की क्षमता बढ़ाता है, साथ ही इसमें कैरोटीन भी पाया जाता है जो सफेद दाग हल्के करने में मदद करता है। 
    • बेलपत्र पित्त की समस्या, खुजली और त्वचा के दाग-छब्बों को भी दूर करने में सहायक है। इसके लिए बेल के रस में जीरा मिलाकर पिएं।
    • सिर और बालों से संबंधि समस्या को भी बेलपत्र की सहायता से दूर किया जा सकता है। इसके लिए बेल के पके हुए फल के छिलके लें, उन्हें साफ करके उनमें तिल का तेल और कपूर मिलाएं। अब इस तेल को रोजाना सिर में लगाएं, इससे सिर में जूं खत्म होने के अलावा अन्य समस्याओं में भी फायदा होता है। 
    • बेलपत्र बालों को झड़ने से रोकने में भी मददगार है। इसके लिए रोजाना एक बेल के पत्ते को धोकर खा सकते है। जल्द ही आपको फर्क दिखना शुरू हो जाएगा।
    • अगर बेल के पके फल को शहद और शकर मिलाकर खाया जाएं, तो खून साफ होने में मदद मिलती है।
    • शरीर से आ रही दुर्गंध को खत्म करने के लिए भी बेलपत्र का इस्तेमाल कर सकते है। इसके लिए बेल के पत्तों का रस पूरे शरीर पर लगाकर कुछ देर रखे फिर एक घंटे बाद नहा लें।
    • मुंह के छाले ठीक करने के लिए पके हुए बेल के गूदे को पानी में उबाल कर ठंडा कर लें। अब इस पानी से कुल्ला करें
    • बेलपत्र का काढ़ा नियमित पीने से दिल मज़बूत रहता है और हार्ट अटैक की आशंका कम होती है। 
    • बेल पत्तियों का रस बनाकर नियमित रूप से सेवन करने से सांस से जुड़ी बीमारियों में लाभ होता है। 
    • तेज बुखार होने पर बेलपत्र का काढ़ा पीने से राहत मिलती है।

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