पलाश (ढाक) के चमत्कारी फायदे और नुकसान जो आप ने कही नही पड़े होंगे ,,
पलाश को ढाक, पलाह, जंगल की लौ, आदि नामों से जाना जाता है। पलाश का वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा (Butea Monosperma) है।
पलाश वृक्ष की संरचना (Structure of Palash Tree) :-
ब्यूटिया मोनोस्पर्मा (Butea monosperma) पलाश, मध्यम आकार का पेड़ होता है जो शुष्क मौसम और सूखे क्षेत्रों में उगता है। यह पेड़ गर्मी के मौसम में अपनी पत्तियों को खो देता है, इसकी ऊंचाई लगभग 15 मीटर तक हो सकती है। इसके फूल गहरे नारंगी या लाल रंग के होते हैं। जब इस पेड़ पर फूल आते हैं उस समय इस पर पत्तों की संख्या बहुत ही कम होती है, इसलिए नारंगी फूलों की अधिक मात्रा होने के कारण इसे जंगल की लौ (Forest flame) का नाम दिया गया है।
पलाश के प्रमुख हिस्से (Major parts of Palash) :-
इस पेड़ की छाल रेशेदार होती है जिससे लाल रंग का रिसाव होता है। इसके पत्तियां (trifoliate) तीन पत्तों के समूह में होते हैं। इसके फूल 2.5 सेमी. लंबे नारंगी या लाल रंग के होते हैं, जिनसे लगभग 15 सेमी. लंबे सेम की तरह फल उत्पादित होते हैं। फल का बाहरी भाग भूरे रंग का होता है जो हल्के रूओं से ढ़का रहता है। इसके बीज 3 सेमी. लंबे और आकार में चपटे होते हैं। इस पेड़ में फूल फरवरी से अप्रैल तक होते हैं और फल मई से जुलाई के महिने तक दिखाई देते हैं। इस पेड़ से प्राप्त गोंद को गम कीनों (gum kino) कहते हैं।
पलाश के धार्मिक महत्व (Religious Importance of Palash) :-
भारतीय इतिहास में पलाश का पेड़ प्रमुख स्थान रखता है। इस पेड़ के लगभग सभी हिस्से औषधीय प्रयोजनों के लिए उपयोग किये जाते हैं। भारत में पुजारियों द्वारा किये जाने वाले यज्ञों में पलाश की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इससे प्राप्त होने वाली गोंद बहुत से रोगों के उपचार में उपयोग की जाती है। साथ इस पेड़ से लाख भी प्राप्त होती जिसका उपयोग पलाश के फायदे को और अधिक बढ़ा देते हैं।
पलाश में पाए जाने वाले पोषक तत्व (Nutrients found in palash) :-
- पलाश की पत्तियों में :- ग्लू कोसाइड, लिनोलेइक एसिड, ओलिक एसिड और लिन्गोसेरिक एसिड (lignoceric acid) बहुत अच्छी मात्रा में होते हैं।
- पलाश की छाल में :- गैलिक एसिड (gallic acid), साइनाइडिंग, लुपेनोन, पैलेसिट्रीन, ब्यूटिन, ब्यूटोलिक एसिड, और पैलेससिमाइड शामिल होते हैं।
- पलाश की गोंद में :- टैनिन, पायरोटेक चिन (pyrocatechin) और श्लेष्मा असंतुलित सामग्री होती है।
- इस पेड़ के फूलों में :- फ्लेवोनॉयड्स (flavonoids), ट्राइटर पेन (triterpene), आइसोबुट्रिन (isobutrin), कोरोप्सिन (coreopsin), आइसोकोरोप्सिन (isocoreopsin) और सल्फरिन (sulphurein.) भी अच्छी मात्रा में उपस्थित होते हैं।
पलाश के वृक्ष भारतवर्ष में सब जगह मिलते हैं। इसको बहुत प्राचीन काल से एक दिव्य औषधि की तरह प्रयोग किया जाता है।
पलाश (टेशू/ढाक) के औषधीय गुण (Medicinal properties of Palash) :-
पलाश के पुष्प स्तम्भन, तृष्णाशामक, मूत्रल, कुष्ठघ्न, ज्वरध्न, दाह प्रशमन है। ये कफ पित्तशामक है। उत्तम भेदन, कृमिघ्न, रक्तरोधक, उत्तेजक, कुष्ठघ्न और विषध्न व प्रमेहध्न है। फल स्तम्भन व प्रमेहध्न है। गोंद स्तम्भन अम्लतानाशक, ग्राही, वृष्य, और बल्य है। यह संग्रहणी, मुखरोग खांसी को दूर करता है। पत्र शोथहर, वेदना स्थापन है। पंचाग रसायन है। यह दीपन, ग्राही, यकृत उत्तेजक, कफवात शामक है। क्षार अनुलोमन और भेदन है। पलाश की जड़ का स्वरस नेत्र रोग, रतौंधी और नेत्र की फूली को नष्ट करता है, यह नेत्रों की ज्योति को बढ़ाता है। पलाश, कुटज, त्रिफला यह सब मेदनाशक तथा शुक्रदोष को मिटाने वाले है। प्रमेह, अर्श, पाण्डूरोग नाशक एवं शर्करा को दूर करने के लिए श्रेष्ठ है।
पलाश के घरेलू दवाओं में उपयोग किये जाने वाला भाग-पलाश की जड़, पलाश की छाल, पलाश का तना, पलाश की पत्ती, पलाश का पुष्प, पलाश का फल, पलाश का तेल आदि पलाश के प्रयोग किये जाने वाले घरेलू दवाएं के रूप में उपयोग में लाये जाते है।
पलाश के कुछ आयुर्वेद चिकित्सा और घरेलू नुस्खे (Some Ayurveda medicine and home remedies of Palash) :-
बिच्छू दंश में पलाश के फायदे :-
- बिच्छू दंश में पलाश के बीजों का अर्क को गाय के दूध में पीसकर दंश पर लेप करने से बिच्छू दंश की वेदना दर्द शांत हो जाती है।
ततैया विष में पलाश के फायदे :-
- ततैया विष में पलाश के बीजों का अर्क को गाय के दूध में पीसकर दंश पर लेप करने से ततैया का विष शीघ्र उतर जाता है।
पलाश के मधुमेह रोग में फायदे :-
- मधुमेह से ग्रसित मरीज को पलाश/ढाक के फूलों का उपयोग करने से मधुमेह में लाभ होता है। इसके लिए पलाश के सूखे हुए पुष्प को पाउडर के कैंडी खंड के साथ मिलाकर व्यक्तिगत रूप से अपने शरीर में शुगर की मात्रा को नियंत्रित रखने के लिए नियमित रूप से 1.5 से 2 ग्राम तक इस मिश्रण का सेवन करने या फिर आप पलाश के पुष्पों को एकत्रित करके सुखा लें। पहले दिन एक फूल को एक गिलाश जल में रात भर भिगों दे, और सुबह इस पानी का नियमित रूप से प्रयोग करने से मधुमेह रोगी को धीरे-धीरे आराम मिल जाता है।
त्वचा व चर्म रोग में पलाश के फायदे :-
- कुष्ठ रोग में पलाश के बीजों के तेल का इंजेक्शन कुष्ठ रोग में चाल मोंगरे के बीजो के तेल से का लेप कुष्ठ रोगी को बहुत लाभकारी होता है।
- दाद से परेशान रोगी को ढाक/पलाश के बीजो को नींबू के रस के साथ पीसकर लेप करने से दाद और खुजली में लाभ होता है।
- घावों पर पलाश के गोंद को सूखकर गोंद का चूर्ण बनाकर घाव पर बुरकने या पानी में मिलाकर गाढ़ा-गाढ़ा लेप करने से घावों में लाभ होता है।
पलाश के नेत्र रोग में फायदे एवं सेवन विधि :-
- नेत्र रोग में पलाश की ताज़ी जड़ों का अर्क एक बून्द आँखों में डालने से आँख की झाँक, खील, फूली नेत्र के सभी प्रकार के रोग में लाभ होता है।
- मोतियाबिंद रोग में पलाश की ताज़ी जड़ों का अर्क एक बून्द आँखों में डालने से मोतियाबिंद रोगी को आराम मिलता है।
- रतौंधी के रोगी को पलाश की ताज़ी जड़ों का अर्क एक बून्द आँखों सुबह-शाम में डालने से रतौंधी रोगी को आराम मिलता है।
पलाश के नकसीर में फायदे एवं सेवन विधि :-
- नकसीर में रात्रि भर शीतल जल में भीगे हुए 5-7 पलाश के पुष्पों को छानकर सुबह हल्का मिश्री मिलाकर पिलाने से नकसीर बंद हो जाती है।
मिर्गी रोग में पलाश/ढाक के फायदे :-
- मिर्गी रोग में पलाश की जड़ों को पीसकर 4-5 बून्द नाक में टपकाने से मिर्गी का दौरा शांत हो जाता है।
पलाश के गलगण्ड में फायदे एवं सेवन विधि :-
- गलगण्ड में पलाश की जड़ को घिसकर कान के नीचे बाँधने या लेप करने से गलगण्ड में लाभ होता है।
पेट की समस्या में पलाश के फायदे :-
- मदाग्नि (पाचन शक्ति) में पलाश की ताज़ी जड़ों के अर्क की 4-5 बून्द नागरबेल के पत्ते के साथ खाने से भूख बढ़ती और पाचन शक्ति सुदृढ़ हो जाती है।
- अफरा में पलाश की छाल और शुंठी का काढ़ा 30-40 मिलीलीटर दिन में दो तीन बार पिलाने से अफारा और उदरशूल नष्ट होता है।
- पेट दर्द में पलाश के पत्तों का 30-40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पिलाने से अफारा और उदरशूल नष्ट हो जाता है
- उदरकृमि परेशान मरीज को पलाश/ढाक के बीजों के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दिन में दो तीन बार सेवन करने से पेट के सभी प्रकार के कीड़े मरकर बाहर निकल जाते हैं। पलाश के बीज निसोत, किरमानी, अजवायन, कबीला, वायविंडग को समभाग मिलाकर 3 ग्राम की मात्रा गुड़ के साथ प्रयोग करने से सभी प्रकार के कृमि नष्ट हो जाते है।
- अतिसार (दस्त) में ढाक के गोंद 625 से 2 ग्राम तक थोड़ी दाल चीनी और चावल भर अफीम मिलाकर पिलाने से दस्त में शीघ्र लाभ होता है।
- खुनी दस्त से ग्रसित मरीज को पलाश के बीजों का काढ़ा 1 चम्मच, बकरी का दूध 1 चम्मच, दोनों को मिलाकर भोजनोपरांत सुबह-शाम तथा दोपहर सेवन करने से खुनी दस्त में लाभ होता है। पथ्य में बकरी का उबला हुआ शीतल दूध और चावल का ही प्रयोग करना चहिए।
यौन रोग व गुप्त रोग में पलाश के फायदे :-
- यौन शक्ति में ढाक की जड़ों का रस निकाल कर उस रस में 3 दिन तक गेहूं के दानों को भिगो दें। तत्पश्चात इन दानों को पीसकर हलवा बनाकर खिलाने से कामशक्ति कमजोरी दूर होती है।
- शीघ्रपतन में ढाक की जड़ों का रस निकाल कर उस रस में 3 दिन तक गेहूं के दानों को भिगो दें। तत्पश्चात इन दानों को पीसकर हलवा बनाकर खिलाने से शीघ्रपतन के रोगी को लाभ होता है।
- वृषण (लिंग) की सूजन में पलाश/ढाक के फूलों को उबालकर गरम-गरम पेडू पर सुबह-शाम बाँधने या लेप करने से लिंग की सूजन बिखर जाती है।
- अंडकोष की सूजन में पलाश के फूलों की पुल्टिस बनाकर नाभि के नीचे बाँधने या लेप करने से मूत्राशय के सभी प्रकार के रोग मिटते हैं। तथ अंडकोष की सूजन भी बिखर जाती है।
- अंडकोष की वृद्धि होने पर मरीज को पलाश की छाल को पीसकर उसको 4 ग्राम की मात्रा में जल के साथ पीसकर दिन में दो तीन बार प्रयोग करने से अंडकोष की वृद्धि नष्ट हो जाती है।
- पुरुषार्थ बनाये रखने में पलाश के कोमल-कोमल नये अंकुरित पत्रों को गाय के दूध में पीसकर 2 चम्मच की मात्रा गाय के दूध के साथ नियमित सुबह-शाम पीने पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है।
- नपुंसकता में पलाश के बीजों के तेल की 2-4 बुँदे कामेन्द्रिय के ऊपर सीवन सुपारी छोड़कर मालिश करने से कुछ ही दिनों में सभी प्रकार की नपुंसकता दूर हो जाती है और प्रबल कामशक्ति जाग्रत होती है। इसकी जड़ के अर्क की 5-6 बून्द की मात्रा दिन में दो तीन बार सेवन से अनैच्छिक वीर्यस्राव रुकता है और काम शक्ति प्रबल होती है।
बवासीर में पलाश के फायदे :-
- अर्श (बवासीर) में पलाश के ताजे पत्रों में गाय के घी की छौक लगाकर दही की मलाई के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
- रक्तार्श (खुनी बवासीर) में पलाश के पंचाग की राख 10 से 20 ग्राम तक गुनगुने गाय के घी के साथ पिलाने से खूनी बवासीर में अत्यंत लाभ होता है। इसको कुछ दिन नियमितरूप से सेवन करने से मस्से सूख जाती है।
पेशाब की जलन व रुकावट में पलाश के फायदे :-
- मूत्रकृछ्र (पेशाब की जलन) में पलाश के फूलों को उबालकर गरम-गरम पेडू पर बांधने या लेप करने से पेशाब की जलन में शीघ्र लाभ मिलता है। ढाक की सूखी हुई कोंपलें, ढाक का गोंद, ढाक की छाल और ढाक के फूलों को मिलाकर चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण में समभाग मिश्री मिलाकर 9 ग्राम चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन दूध के साथ रात्रि के समय सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र मिटता हैं।
- पेशाब की रुकवाट में पलाश के फूलों को उबालकर गरम-गरम पेडू पर बांधने या लेप करने से पेशाब की रुकवाट में फौरन लाभ होता है।
- पेशाब के साथ खून आने पर रोगी को पलाश के पुष्प 20 ग्राम को रात भर 200 मिलीलीटर ठंडे पानी में डालकर रख दे, सुबह हल्का सा मिश्री मिलाकर पिलाने से पेशाब के साथ खून आना बंद हो जाता है।
गुर्दे के दर्द में पलाश के फायदे :-
- गुर्दे के दर्द से परेशान मरीज को 20 ग्राम पलाश के पुष्पों को रात भर 200 मिलीलीटर ठंडे पानी में भिगोकर सुबह हल्का सा मिश्री मिलाकर पिलाने से गुर्दे का दर्द शांत हो जाता है।
सूजन में पलाश के फायदे एवं सेवन विधि :-
- सूजन में पलाश के फूलों की पुल्टिस बनाकर नियमित रूप से सुबह-शाम तथ दोपहर बांधने या लेप करने से सूजन बिखर जाती है।
गंठिया रोग में पलाश के फायदे :-
- सन्धिवात (गंठिया रोग) में पलाश बीजों को महीन चूर्ण पीसकर शहद के साथ मिलाकर दर्द/वेदना के स्थान पर लेप करने या पुल्टिस बाँधने से गंठिया रोग में लाभ होता है।
बंदगांठ में पलाश के फायदे :-
- बंदगांठ में पलाश और ढाक के पत्तों की पुल्टिस नियमित रूप से सुबह-शाम बाँधने या लेप करने से बंदगांठ फौरन बिखर जाती है। पलाश की जड़ की 3-5 ग्राम अन्तरछाल को दूध के साथ रोगी को पिलाने से बंदगांठ में लाभ होता है।
पित्त की सूजन में पलाश के फायदे :-
- पित्तशोथ में पलाश के गोंद को पानी में मिलाकर नियमित लेप करने से कष्ट साध्य पित्तशोथ पित्त की सूजन मिट जाती है।
निरोगी काया में पलाश के फायदे :-
- निरोगी काया बनाये रखने के लिए पलाश को छाया में सूखे हुए पंचाग का चूर्ण शहद एवं गाय के घी के साथ 1 चम्मच की मात्रा में प्रातःकाल और शाम के समय सेवन करने से मनुष्य निरोगी हो जाता है।
- दीर्घायु की कमना करने वाले व्यक्तियों को पलाश को छाया में सूखे हुए पंचाग का चूर्ण शहद एवं गाय के घी के साथ 1 चम्मच की मात्रा में प्रातःकाल और शाम के समय सेवन करने से दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
पलाश खाने के नुकसान :-
- गर्भवती स्त्री को पलाश के सेवन से बचना चहिए क्योंकि स्तन पान के समय पलाश के सेवन करने से स्त्री के गर्भ को नुकसान पहुंचाता है।
- पलाश का अधिक मात्रा में सेवन करने से एनीमिया और किडनी से संबंधित समस्या हो सकती हैं। इसलिए पलाश का सेवन कम-कम से मात्रा में और सीमित अवधि में किया जाता है।
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